अरुंधति जोशी
साल 2011 में उन्हें उनके समर्थकों और मीडिया के एक हिस्से ने 'आखिरी गांधी' कहा था. लेकिन सफेद धोती-कुर्ता और गांधी टोपी पहनने वाला 82 साल का इस शख्स को अब न तो तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया और न ही विपक्षी दल तवज्जो देते हैं. हाल ही में उन्होंने अपने गांव रालेगण सिद्धी में सात दिन तक भूख हड़ताल की लेकिन इसको लेकर 2011 या 2013 की तरह का माहौल नहीं बना. अन्ना हजारे और उनके अनशन को बड़ी कवरेज नहीं मिल पाई. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने यह अनशन समाप्त कराया.
अन्ना हजारे ने जब 2011 में अनशन किया था तो उस समय देशभर में भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शन हुए थे और इन्हें क्रांतिकारी कहा गया था. 2019 में भी हजारे ने लगभग 2011 जैसी ही मांगों को लेकर अनशन किया लेकिन इस बार उन्होंने दिल्ली के जंतर मंतर के बजाय अपने गांव रालेगण सिद्धी को चुना. एक समय जिसे अन्ना मैजिक कहा गया था वह 2019 में नजर क्यों नहीं आ रहा?

अन्ना हजारे की पुरानी तस्वीर
2011 में जब अन्ना हजारे सामने आए थे तो लोगों ने सोचा कि वह जरूरी बदलाव ला सकते हैं. अचानक से प्रत्येक जागरूक भारतीय ने खुद को 'मैं अन्ना हूं' नारे के साथ जोड़ लिया. 26 अगस्त 2011 को बीबीसी के मार्क डमेट ने अपनी रिपोर्ट में अन्ना को 'नया महात्मा गांधी' बताया था.
2011 में अन्ना मैजिक को तत्कालीन कांग्रेस सरकार के लिए एक बड़े भूकंप की तरह महसूस किया गया था. उन्हीं अन्ना का जादू 2019 में नहीं चला और केंद्र में मौजूद बीजेपी की सरकार को तो इसका कंपन भी महसूस नहीं हुआ. देखा जाए तो बीजेपी की महाराष्ट्र सरकार के मुखिया ने उनका अनशन समाप्त कराया. तो इससे क्या पता चलता है. पिछले सात साल में अन्ना बिलकुल नहीं बदले और न ही उनकी मांगे बदलीं. फिर ऐसा क्या हुआ कि जिस आदमी को नया गांधी कहा जा रहा था उसका समर्थन समाप्त हो गया. केवल सात साल में देश ने उनकी नायक जैसी छवि को क्यों भुला दिया. सात साल की इस कहानी के कई हिस्से हैं जिन्हें हमने रालेगण सिद्धी जाकर समझना चाहा.

अन्ना का गांव
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अन्ना एक अडिग व्यक्तित्व
बाबूराव हजारे उर्फ अन्ना हजारे 1990 से ही महाराष्ट्र के बहुचर्चित चेहरे रहे हैं. रालेगण सिद्धि में सामाजिक परिवर्तन लाकर उन्होंने मीडिया का ध्यान खींचा था. तब से ही वे स्थानीय मीडिया में हमेशा चर्चित बने रहे. 1975 में जब अन्ना सेना से रिटायर होकर रालेगण सिद्धि पहुंचे उन्होंने गांव में ही परिवर्तन लाना शुरू किया. वे भारतीय सेना में थे और दुश्मनों के हमले में दो बार बाल-बाल बचे.
सेना में अपने करियर के दौरान अन्ना की तैनाती कई जगहों पर भी हुई. उनकी तैनाती सीमा पर भी हुई थी. अन्ना ने बताया कि सेना में अपने कार्यकाल के दौरान मुझे अपनी जिंदगी और उसके लक्ष्य के बारे में पता चला. मैं महात्मा गांधी के ग्रामीण विकास की योजना से बहुत प्रभावित हुआ. अन्ना खुद को स्वामी विवेकानंद के साहित्य से प्रभावित भी बताते हैं.
1.सैनिक से स्वयंभू संत की ओर: गांधीगीरी की तरफ यात्रा
समाजसेवी अन्ना हजारे ने शादी नहीं की है और वह अपने घर की बजाय मंदिर में रहना पसंद करते हैं. उन्होंने अपने गांव में यादवबाबा मंदिर के निर्माण की पहल खुद की थी. अन्ना हजारे पिछले तीन दशकों से वहां रह रहे हैं. जबकि उनके दो भाई उसी गांव में अपने पैतृक घर में रहते हैं.
अन्ना हजारे ने नेटवर्क18 से बात करते हुए कहा, 'मैं एक फकीर हूं जिसकी कोई महत्वाकांक्षा और उम्मीद नहीं है. मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य निस्वार्थ भाव से राष्ट्र की सेवा करना है.' उनकी भाभी कांताबाई मारुति हजारे बताती हैं कि उन्हें अन्ना का रिश्तेदार होने पर गर्व है. वे आगे कहती हैं, 'लेकिन जब वह अनशन करते हैं तो मुझे बहुत दुख होता है. वे अब बूढ़े हो गए हैं और हम उनकी देखभाल करते हैं.'
एकमात्र जीवित भाई मारुति हजारे का परिवार अन्ना की देखभाल करता है. उनके भाई स्पष्ट रूप से बताते हैं कि अन्ना की प्रसिद्धि का फायदा उनके करीबी या परिजनों को नहीं मिला. अन्ना के आंदोलन के समय भी परिवार का कोई भी सदस्य कभी भी आगे नहीं आया. रालेगण सिद्धि को महाराष्ट्र के आदर्श गांव का दर्जा प्राप्त है. अन्ना हजार का गांव होने के साथ साथ यह प्रभावी जल प्रबंधन और सफाई व्यवस्था के लिए भी जाना जाता है.
अन्ना ने 'शराब बंदी' आंदोलन की शुरुआत इस गांव से भी शुरू की थी. अन्ना हजारे ने यहां पर यादवबाबा मंदिर का निर्माण कराया जो आज भी ग्रामीण विकास गतिविधियों और उनके सभी आंदोलनों के केंद्र के रुप में जाना जाता है.
2. ग्राम सभा के लिए आंदोलन, शहरीकरण के विरोध से भ्रष्ट मंत्रियों पर कार्रवाई तक
रालेगण सिद्धि को महाराष्ट्र के आदर्श गांव का दर्जा प्राप्त है. अन्ना हजार का गांव होने के साथ साथ यह प्रभावी जल प्रबंधन और सफाई व्यवस्था के लिए भी जाना जाता है. अन्ना ने 'शराब बंदी' आंदोलन की शुरुआत इस गांव से भी शुरू की थी. अन्ना हजारे ने यहां पर यादवबाबा मंदिर का निर्माण कराया जो आज भी ग्रामीण विकास गतिविधियों और उनके सभी आंदोलनों के केंद्र के रुप में जाना जाता है.
हजारे ने ग्रामीणों को श्रमदान के जरिए वॉटर मैनेजमेंट सिस्टम बनाने केलिए राजी किया. एक समय यह गांव सूबे के लिए जाना जाता था. यहां पूरे साल में सिर्फ 10-12 इंच वर्षा होती है और जितनी भी बारिश होती थी उसका सारा पानी बह जाता था. अब गांव का जल प्रबंधन तंत्र इतना परिपूर्ण है कि सूखे के समय भी यहां पानी रिजर्व रहता है.
3. गांव उनके लिए जान दे सकता है.
रालेगण सिद्धी- एक छोटा सा गांव जो कि पुणे से 80 किलोमीटर दूर औरंगाबाद रोड पर स्थित है. यह गांव केवल और केवल अन्ना हजारे की वजह से ही जाना जाता है. एक समय यह गांव सूखे से जूझ रहा था जिसे हजारे ने मॉडल गांव के रूप में बदल दिया. अन्ना कहते हैं, 'मेरा गांधीजी के ग्रामीण विकास में मजबूत विश्वास है और मैं मानता हूं कि इससे ही देश में जरूरी बदलाव है. शहरीकरण समाधान नहीं है.'
रालेगण सिद्धी में 1990 से ही देश और विदेश से कई लोग आते हैं. उन्हें 1992 में ग्रामीण विकास के लिए पद्मश्री सम्मान मिला था. अन्ना हजारे के करीबी दत्ता आवरे ने कहा, 'जब अन्ना अनशन का ऐलान करते हैं तो पूरा गांव बिना सवाल किए उनका समर्थन करता है. इस दौरान गांव में रसोई बंद रहती है. हम लोग भी व्रत रखते हैं.' जब उनसे पूछा गया कि क्या गांधीवादी तरीका आज भी कारगर है तो उन्होंने जवाब दिया, 'अन्ना हमारे काफी कुछ हैं... वे पिता समान हैं जिनके हम जान दे सकते हैं.'
रालेगण सिद्धी के सरपंच जयसिंह मापड़ी बताते हैं, 'हम एक परिवार के रूप में अन्ना का समर्थन करते हैं फिर चाहे जो हो. कुछ मसलों पर असहमति हो सकती है लेकिन अन्ना की आवाज हमें साथ ले आती है.'
4.आरटीआई से लोकपाल तक का सफर
अन्ना ग्राम सभा एक्ट में संशोधन पर जोर देने लगे लेकिन उनके चिंतन का मुख्य बिंदू भ्रष्टाचार पर लगाम कसना बना रहा. यह कहा जा सकता है कि सूचना का अधिकार अधिनियम का श्रेय अन्ना हजारे को जाता है. अन्ना के इस आंदोलन में कई अन्य सहयोगियों ने भी साथ दिया था. सूचना के अधिकार को लागू करने के लड़ाई सबसे पहले उन्होंने महाराष्ट्र में लड़ी जिसके बाद पूरे देश से लोग इस पहल पर अन्ना के साथ आए. आरटीआई के बाद लोकपाल के लिए जंग की तैयारी. अन्ना हजारे लगातार सामाजिक आंदोलनों के लिए खुद को तैयार करते रहे.
5.अनशन, अन्ना का सबसे बड़ा अस्त्र
अन्ना गांधीवादी दर्शन में भरोसा करते हैं. गांधी को मानने वाले जानते हैं कि अनशन आंदोलनों का सबसे बड़ा हथियार है. पिछले 25 वर्षों से गांधी अनशन को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. 2003 में उन्होंने महाराष्ट्र के 4 भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ आंदोलन कर तत्कालीन सरकार पर उन्होंने भारी दबाव बनाया था. उन्होंने इसी हथियार का इस्तेमाल कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन वाली सरकार के खिलाफ भी किया था.
6. सामाजिक आंदोलन न कि राजनीति
अन्ना हजारे राजनीति के बजाय सामाजिक आंदोलन में विश्वास करते हैं. शुरुआत से ही उन्होंने किसी राजनेता या पार्टी को समर्थन नहीं दिया. उनका कहना है कि उन्हें राजनेताओं पर न तो भरोसा है और न ही उम्मीद है. हजारे का कहना है कि सरकार बदलने से देश नहीं बदलेगा, सिस्टम बदलने से देश बदलेगा. कोई राजनीतिक दल ऐसा बदलाव नहीं ला सकता. इसलिए सामाजिक आंदोलनों को मजबूत होना चाहिए.
7. गांधी भक्त से आरएसएस समर्थक तक
हजारे का राजनीतिक रूख कई लोगों को भ्रमित करता है. उनके कमरे में महात्मा गांधी की एक बड़ी फोटो लगी है. वह कहते हैं, 'मैंने अपनी जिंदगी में किसी राजनीतिक दल का पक्ष नहीं लिया है. मैंने किसी दल के लिए प्रचार नहीं किया.' 2011 से 2013 के दौरान जब अन्ना हजारे ने लोकपाल बिल की मांग को लेकर अनशन किया था तो उन्हें सरकार विरोधी कहा गया था. उस समय बीजेपी विपक्ष में थी और उसने अन्ना के आंदोलन का फायदा उठाया. अन्ना ने अपने हालिया अनशन के दौरान कहा था, ' बीजेपी ने मेरा फायदा उठाया.' वे कहते हहैं उनका किसी राजनीतिक दल से संबंध नहीं
8. अरविंद केजरीवाल और टीम अन्ना की एंट्री
अन्ना का आंदोलन पहले सिर्फ महाराष्ट्र तक ही सीमित था. बाद में केजरीवाल और उनकी टीम उन्हें देश भर में लेकर गए. अन्ना के आंदोलन को 2011 में लोकप्रियता मिली. अन्ना के समर्थक आज भी कहते हैं कि केजरीवाल और उनकी टीम ने उनका इस्तेमाल किया. केजरीवाल के राजनीति में कदम रखने के बाद अन्ना ने उन्हें अपने साथ मंच साझा करने नहीं दिया.
9. टीम अन्ना तब और आज
एक समय था जब अन्ना के साथ बड़े लोगों की फौज थी. मेधा पाठकर से लेकर, अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, योगेंद्र यादव, जीपी प्रधान जैसे एक से बढ़ कर एक बड़े लोग थे. लेकिन आज हालात बदल गए हैं. आज अन्ना के साथ ज़्यादातर लोग गांव से हैं.
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