
दुधवा व पीलीभीत के बाघों पर अन्तर्राष्ट्रीय शिकारियों की निगाहें
बाघ प्राणहिता वाइल्डलाफ सैंचुरी (Pranhita Wildlife Santuary) प्राणहिता से चलकर 450 किलोमीटर दूर गढ़चिरौली महाराष्ट्र (Gadchiroli Maharashtra) के अलापल्ली फारेंस्ट रेंज (Allapalli Forest Range) में पहुंच चुका है. c1 की यह यात्रा इतिहास में दर्ज किसी बाघ की अब तक सबसे लंबी यात्रा (Longest Tiger Travel) मानी जा रही है.
- Last Updated: November 11, 2019, 11:01 AM IST
c1 इसी साल 21 जून को अपने इलाका तय करने यवतमाल से निकला है. विशेषज्ञों की माने तो किसी बाघ की इतनी लंबी यात्रा आज तक दर्ज नहीं की गई है. यह बाघ अभी तक रुका नहीं है. फिलहाल इसकी मूवमेंट अकोला वन्यजीव क्षेत्र में दर्ज की जा रही है.
इस दो वर्षीय युवा बाघ को उसके रेडियो कालर की मदद से वन्यजीव विशेषज्ञ ट्रैक कर रहे हैं. दोनो ही बाघों ने अपनी यात्रा के दौरान इंसानों से बचने और खुद को परिवेश में ढालने की जबरदस्त क्षमता दिखाई है. जंगल से लगे गांव के आसपास बाघों को दूर रखने के लिए तारों में बिजली की सप्लाई कर दी जाती है. इससे भी दोनो बाघ सुरक्षित रहे.
रेडियो कालर से मिल रही है सटीक जानकारी
बाघों की मॉनीटरिंग करने वाले विशेषज्ञ मानते हैं कि बाघों का ऐसा मूवमेंट पहले भी हुआ होगा लेकिन रेडियो कालर न होने की वजह से कभी रिकॉर्ड नहीं हुआ. बाघ c1 की यात्रा तो सबसे ज्यादा दिलचस्प है.
कवाल के पास के क्षेत्रों की खोज के बाद, C1 वापस आया और पिंगंगा के पास गया. उसके बाद इसापुर पक्षी अभयारण्य, पुसाद, हिंगोली, वाशिम और अब अकोला. अपनी पूरी यात्रा के दौरान, इंसानी आबादी के आसपास जाने के बावजूद बाघ को तब तक किसी ने भी नहीं देखा था. जब तक उसने 3 नवंबर को हिंगोली के पास सुकली के एक ग्रामीण को गलती से घायल नहीं कर दिया. अब यह अमरावती जिले में मेलघाट टाइगर रिजर्व से 70 किमी दूर है.
दूसरा बाघ k7 कागजनगर तेलंगाना की बाघिन फाल्गुना का शावक है. उसे वहां के नर बाघ A1 ने इलाकाई दबदबे के चलते खदेड़ा था. इसकी यात्रा भी बेहद नाटकीय रही है. स्थानीय फॉरेस्ट रेंज ऑफिसर एस वेणु गोपाल के मुताबिक k7 की मूवमेंट आनुवांशिक विकास की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है.
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यह पहली बार 11 सितंबर को महाराष्ट्र के प्राणहिता वाल्डलाइफ सैंचुरी से निकला था. फॉरेस्ट ऑफिसर्स को उम्मीद थी कि वह बारिश के बाद लौट आएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसे पिछले महीने 19 अक्टूबर को गढ़चिरौली के जंगलों में देखा गया. गढ़चिरौली के बाघों को भी रेडियो कॉलर मिल सकते हैं महाराष्ट्र के मुख्य वन्यजीव वार्डन नितिन एच काकोडकर ने बताया कि रेडियो कॉलरिंग की मददे बाघों के गलियारों और फैलाव के पैटर्न के बारे में बेहतर जानकारी मिल रही है. इससे उनके बारे में अब विशेषज्ञ और अधिक जानने में सक्षम हैं.
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First published: November 11, 2019, 11:01 AM IST
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