
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) में पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कोर्ट का ये काम नहीं है कि वो हदीस में क्या लिखा है इसके आधार पर कोई टिपण्णी करे.
- News18Hindi
- Last Updated: November 11, 2019, 11:31 AM IST
SC की दलील
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'किसी के धार्मिक विश्वास को मापने का तरीका ये है कि क्या वो उस स्थान में विश्वास करते हैं जहां वो प्रर्थना करते हैं. कोई अगर किसी जगह को मस्जिद समझ कर नमाज अदा कर रहा है तो उसके विश्वास को चुनौती नहीं दी जा सकती है.' फैसले के दौरान कहा गया कि एक धर्मनिरपेक्ष संस्थान के तौर पर सुप्रीम कोर्ट को किसी की आस्था और विश्वास पर कुछ भी नहीं कहना चाहिए. कोर्ट ने कहा, 'किसी भी धर्म को मानने का तरीका चाहे वो इस्लाम ही क्यों न हो वो सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर बदलते रहते हैं.'
SC को क्यों देनी पड़ी ये दलील
दरअसल सुप्रीम कोर्ट को ये टिपण्णी अखिल भारतीय श्री राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा की दलिलों के बाद करनी पड़ी. उन्होंने कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा था कि बाबरी मस्जिद में वो सारे फीचर नहीं है जो एक इस्लामिक रिती रिवाज़ के तहत होने चाहिए.
मिश्रा ने बाबरी मस्जिद पर उठाए सवाल
हदीस का हवाला देते हुए मिश्रा ने कहा कि बाबरी मस्जिद सीधे-सीधे इस्लामिक नियमों का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि किसी भी मस्जिद में वज़ू या फिर हाथ-पैर धोने की जगह होनी चाहिए. इसके अलावा वहां मूर्तियों का चित्र, फूल के डिजाइन नहीं होने चाहिए. साथ ही वहां घंटी बजाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इसके अलावा एक ही प्लॉट पर दो धार्मिक जगह की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. बाबरी मस्जिद में इन नियमों का पालन नहीं हो रहा था.
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मोहम्मद पाशा ने दलिलों को किया खारिज
इसके बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील मोहम्मद पाशा ने पीएन मिश्रा की दलिलों को खारिज करते हुए कहा कि ये सारी चीजें बकवास है. उन्होंने कहा कि मिश्रा ने हदीस की बातों को गलत तरीके से रखा है. मोहम्मद पाशा ने कहा कि ये किसी भी शख्स पर निर्भर करता है कि वो कैसे अल्लाह को याद करे. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मिश्रा की दलिलों को खारिज कर दिया.
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First published: November 11, 2019, 11:31 AM IST
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