आज हम आपको एक ऐसे इतिहास के बारे में बताएंगे, जहां पर वीर पुरुष तो मौजूद थे और वीरता भी थी। लेकिन एक अपने ही व्यक्ति ने गद्दारी की और उसकी सजा पूरी प्रजा को भूतनी पड़ी और यह खूबसूरत इतिहास हमे खून से सना हुआ मिला।
दरअसल हम जिस इतिहास की बात कर रहे हैं, वह जुड़ा है छत्रपति संभाजी महाराज के इतिहास से।
जब औरंगजेब दख्खन में से मराठों को खत्म करने के उद्देश्य से दिल्ली से करीब 5 से 6 लाख की फौज, ढेर सारे हाथी,और धनराशि लेकर दख्खन आया था, लेकिन संभाजी ने औरंगजेब को मराठों का पहला किला जीतने में ही करीब 6 साल लगा दिए।
इसके बाद 1987 के वाई के युद्ध में शूरवीर मराठा सेनापति हंबीरराव मोहिते मारे गए, मराठे कमजोर पड़ गए, तो इसी दौरान संभाजी के साले गणोजी शिर्के ने औरंगजेब के साथ हाथ मिला लिया।
और औरंगजेब के हाथों मिलकर छल से संभाजी और उनके करीबी साथी कवि-कलश को गिरफ्तार करवा दिया, इसके बाद औरंगजेब ने संभाजी को यह आमंत्रण पत्र भेजा कि, वह इस्लाम कबूल कर ले तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा और खुद औरंगजेब की बेटी से शादी करवा दी जाएगी, लेकिन संभाजी ने अपना धर्म छोड़ने से इंकार कर दिया, धर्म के लिए इस बलिदान हेतु उन्हें ‘धर्मवीर’ भी कहा जाता है।
सबसे पहले संभाजी को फटे कपड़े पहनाकर परेडिंग करवाई गई, फिर गरम लोहे से उनके दोनों आंखें फोड़ दी गई, उनकी चमड़ी उधेड़वा दी गई,नाखून उखाड़ दिए गए, उनके शरीर को बाहर फेंक दिया गया ताकि सड़ जाए और चील कौवे उन्हें खा जाएं, अंत में उनके शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर जंगल में फेंकवा दिया, इन सभी दर्द और सितम का जड़ गणोजी शिर्के हैं।