उस समय बरसा ऋतू के कारण बादल उमड़ घुमड़ रहे थे, काले काले बादल छाए हुए थे बिजली चमक रही थी वही आश्रम के पास पहुंची तो कुछ बूंदाबादी भी शुरू हो गई। सुंदर युवती को अकेला पाकर साधु के मन में विकार आ गया उसने उस से निवेदन किया तो ब्राह्मण की बेटी बोली मुझे लगता है कहीं कोई आ न जाए आप बाहर का दरवाजा बंद कर आए, साधु जैसे ही से बाहर की ओर दौड़ा इसी बीच मौका पाकर लड़की ने भीतर से कुंडी लगा ली। साधु ने दरवाजा बंद देखा तो पहले लड़की से अनुरोध किया जब उसने दरवाजा नहीं खोला तो उसे धमकाने लगा।
लड़की ने फिर भी दरवाजा नहीं खोला अब साधु लड़की वाले कमरे की छत पर चढ़ गया और उसमें छेद करने लगा। थोड़ा सा सुराख होते ही वह उसमें से निकलने की कोशिश कर रहा था , लेकिन छेद छोटा बहुत था उसका शरीर उसी सुराग में फंस गया। तो लड़की ने उपयुक्त अवसर देख अंदर से दरबाजे की कुंडी खोली , और गांव की ओर चल पड़ी और अपने पिता से जाकर बोली कि आप गांव के सभी लोगों के साथ साधु के आश्रम पर पहुंचे और साधु से कहिए कि कामदेव में कितना बल होता है।
पंडित जी ने लड़की के कहे अनुसार ऐसा ही किया और गांव वालों को इकट्ठा करके आश्रम की ओर चल दिए। आश्रम पर पहुंच कर सभी गांव वालो ने एक साथ साधु से पुछा कि कामदेव में कितना बल होता है। शर्म से साधु, पंडित जी से नजर न मिला सका और बोला, मुझे क्षमा करो पंडित जी कामदेव में 10,000 हाथियों का बल नहीं ,बल्कि असंख्य हाथियों का बल होता है।
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