शाहजहाँ का विवाह आसफ खां की पुत्री अर्जुमन्द बानो बेगम से हुआ। जिसे शाहजहाँ ने मलिका-ए-जमानी की उपाधि प्रदान की। जो आगे चलकर मुमताज महल के नाम से जानी गई। मुमताज की ही याद में शाहजहाँ ने एक अलीशान महल यमुना नदी के किनारे निर्माण करवाया। जो अब 7वें अजूबें ताजमहल के नाम से जाना जाता है।
फरवरी 1628 ई0 में शाहजहाँ राजगद्दी पर बैठा। गद्दी पर बैठते ही शाहजहाँ 1632 ई0 में पुर्तगालियों के प्रभाव को समाप्त कर किया। ऐसे कई युद्धों को अंजाम देने वाले शाहजहाँ को अपने बेटों औरंगजेब, दारा शिकोहा, शाहशुजा, मुराद बख्श, सुल्तान उम्मीद बख्श, सुल्तान लुफ्ताल्ला और सुल्तान दौलत अफजा 7 पुत्रों में से किसी का भी कन्धा नसीब नहीं हुआ।
शाहजहाँ की अर्थी को कन्धा उसके साधारण नौकरों और किन्नरों ने दिया। इसका कारण यही रहा कि 7 पुत्रों में से 3 की जन्म से कुछ ही महीनों और वर्षों में मृत्यु हो गई थी और बाकी के चारों में शाहजहाँ की राजगद्दी के लिए युद्ध हुआ जिसमें सिर्फ छल कपट से औरंगजेब ही शाहजहाँ को आगरा के महल में कैद करके सिंहासन पर बैठा।
फरवरी 1628 ई0 में शाहजहाँ राजगद्दी पर बैठा। गद्दी पर बैठते ही शाहजहाँ 1632 ई0 में पुर्तगालियों के प्रभाव को समाप्त कर किया। ऐसे कई युद्धों को अंजाम देने वाले शाहजहाँ को अपने बेटों औरंगजेब, दारा शिकोहा, शाहशुजा, मुराद बख्श, सुल्तान उम्मीद बख्श, सुल्तान लुफ्ताल्ला और सुल्तान दौलत अफजा 7 पुत्रों में से किसी का भी कन्धा नसीब नहीं हुआ।
शाहजहाँ की अर्थी को कन्धा उसके साधारण नौकरों और किन्नरों ने दिया। इसका कारण यही रहा कि 7 पुत्रों में से 3 की जन्म से कुछ ही महीनों और वर्षों में मृत्यु हो गई थी और बाकी के चारों में शाहजहाँ की राजगद्दी के लिए युद्ध हुआ जिसमें सिर्फ छल कपट से औरंगजेब ही शाहजहाँ को आगरा के महल में कैद करके सिंहासन पर बैठा।