एक प्रचलित कथा के अनुसार पुराने समय में एक व्यापारी को अपना व्यापार बढ़ाने के लिए साझेदार की जरूरत थी। ये बात उसने अपने साथी व्यापारियों को भी बताई। कुछ दिनों के बाद उसके पास एक व्यक्ति आया और बोला कि वह साझेदार बनना चाहता है। व्यापारी को साझेदार चाहिए था तो उसने उसे भी अपने व्यापार में शामिल कर लिया। अब दोनों साझेदार व्यापार करने लगे। उनका काम तेजी से बढ़ रहा था।
एक दिन व्यापारी का एक दोस्त उससे मिलने आया तो उसने साथी साझेदार को देखा। दोस्त पहचान गया कि ये तो एक ठग है, चोरी करता है। व्यापारी का मित्र शास्त्रों का जानकार था। उसने पढ़ा था कि कभी भी किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए, इसीलिए उसने नए साझेदार की प्रशंसा की। मित्र ने व्यापारी से कहा कि तुम्हारा नया साझेदार जिसके साथ काम करता है, उसका विश्वास जीत लेता है। व्यापारी ने पूछा कि तुम इसे जानते हो तो बताओ इसके साथ साझेदारी आगे बढ़ानी चाहिए या नहीं? मित्र ने कहा कि ये बहुत मेहनती है।
व्यापारी इस बात से खुश हो गया, क्योंकि नया साझेदार बहुत अच्छा काम कर रहा था। उसकी वजह से व्यापार बढ़ रहा था। कुछ दिनों के बाद उनके पास बहुत धन आने लगा। मौका पाकर ठग साझेदार सारा धन लेकर गायब हो गया। व्यापारी बर्बाद हो गया। उसने साझेदार को बहुत खोजा, लेकिन वह नहीं मिला। तब वह अपने मित्र के पास पहुंचा जो उसे जानता था।