
विनोद मिश्रा
बांदा। उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड की इकलौती बंद पड़ी कताई कताई मिल पर जिम्मेदार अधिकारियों के ढुलमुल रवैये से मिल की बची खुची संपत्ति भी नष्ट हो रही है। कताई मिल परिसर व वहां रखी मशीनरी आदि की सुरक्षा के लिये शासन से सेना के रिटायर्ड सैनिकों को लगाने के निर्देश दिए थे। लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने शासन के आदेशों को ताक पर रख कर प्राइवेट एजेंसी को सुरक्षा का जिम्मा सौंप दिया है।
लगातार की प्रकृति की मार झेल रहे बुंदेलखंड में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है और यहां के सैकड़ों युवा रोजगार की तलाश में महानगरों की ओर पलायन कर चुके हैं। इलाके की बेरोजगारी दूर करने की गरज से तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1981 में जिला मुख्यालय से सटे मवई गांव के पास करोड़ों रुपए की लागत वाली कताई मिल (यार्न कंपनी) का शिलान्यास किया था और यह मिल 1983 में चालू भी हो गई थी। मिल में सैकड़ों तकनीकी व गैर तकनीकी श्रमिकों को नौकरी मिली और लोगों के घरों में खुशियों के दीप जल उठे। लेकन महज दस वर्ष बाद ही कताई मिल को राजनीति के ग्रहण ने डस लिया और विदेशों तक अपना धागा निर्यात करने वाली कताई मिल 1992 में बीमार घोषित हो गई।
साजिशन मिल को घाटे में दिखाकर ताला डाल दिया गया और मिल में काम करने वाले करीब 18 सौ कामगारों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। हालांकि मिल के मजदूरों की लड़ाई लड़ने के लिए मजदूरों ने कताई मिल मजदूर मोर्चा का गठन किया और मजदूर नेता राम प्रवेश यादव की अगुआई में कताई मिल को फिर से चालू कराने के लिए संघर्ष लगातार चल रहा है। इतना ही नहीं मिल मजदूरों और कर्मचारियों ने मिल बंदी के खिलाफ हाई कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया। अदालत ने 14 फरवरी, 2006 को एक आदेश पारित कर मजदूरों को निकाले जाने को अवैध घोषित कर दिया, फिर भी उनकी बहाली नहीहुई । कताई मिल में काम करने के लिए पूर्वांचल से निकल कर बुंदेलखंड की धरती पर काफी संख्या में मजदूरआए थे, ताकि उनका व उनके परिवार का भविष्य बेहतर हो सके। लेकिन समय के साथ उनके सुनहरे सपने धुंधले हो गए और कताई मिल बंद होने के बाद भी वह संघर्ष कर रहे हैं। 29 सालों से मिल में ताला बंद है और यहां काम करने वाले 1800 कामगारों के परिवार के फुटपाथ पर आ गए और दो जून की रोटी के जुगाड़ में भटक रहे हैं।
लगातार दैवीय आपदाओं का दंश झेल रहे बुंदेलखंड में बेरोजगारी दूर करने के लिए बांदा की कताई मिल व बरगढ़ की ग्लास फैक्ट्री ही मात्र विकल्प थे, जिन्हें सरकार ने अकारण ही बंद कर दिया है। कताई मिल जहां दस साल तक देश विदेश में ख्याति पाने के बाद साजिश का शिकार हो गई, वहीं बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री शुरू होने से पहले बंद कर दी गई। रोजगार के यह बड़े प्लेटफार्म ठप होने के बाद यहां युवाओं और किसानों का पलायन बढ़ा । वहीं बांदा की बंद कताई मिल में पिछले कई सालों से अधिकारियो की लूट का अड्डा बन कर रह गई है।
जिला कांग्रेसकांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राजेश दीक्षित का कहना है कि बांदा की कताई मिल कांग्रेस सरकार की एक बड़ी उपलब्धि रही है। लेकिन सैकड़ों कामगारों को रोजगार देने वाली कताई मिल षड़यंत्र के तहत बंद कर दी गई, जिससे यहां लगी अरबों की मशीनरी व अन्य साजो सामान धूल फांक रहा है। वर्तमान में बंद पड़ी इस मिल के संचालन व रखरखाव का जिम्मा का कानपुर में तैनात एक अधिकारी ने संभाल रखा है। लेकिन अधिकारी की मनमानी व मिलीभगत से यहां अक्सर चोरी की घटनाएं होती हैं और धीरे धीरे समूचा मिल परिसर खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। उनका कहना है कि कताई मिल परिसर की सुरक्षा में सरकार को किसी सक्षम अधिकारी को नियुक्त करना चाहिए और नियमित मानीटरिंग करनी चाहिए।